Disable Copy Text

Thursday, April 30, 2015

चाँदनी...!



चाँदी की झीनी चादर-सी
फैली है वन पर चाँदनी,
चाँदी का झूठा पानी है
यह माह-पूस की चाँदनी ।

खेतों पर ओस-भरा कुहरा,
कुहरे पर भीगी चाँदनी,
आँखों में बादल-से आँसू,
हँसती है उन पर चाँदनी ।

दुख की दुनिया पर बुनती है
माया के सपने चाँदनी,
मीठी  मुसकान बिछाती है
भीगी पलकों पर चाँदनी ।

लोहे की हथकड़ियों-सा दुख,
सपनों-सी झूठी चाँदनी,
लोहे से दुख को काटे क्या
सपनों-सी मीठी चाँदनी ।

यह चाँद चुरा कर लाया है
सूरज से अपनी चाँदनी,
सूरज निकला, अब चाँद कहाँ ?
छिप गयी लाज से चाँदनी ।

दुख और कर्म का यह जीवन,
वह चार दिनों की चाँदनी,
यह कर्म-सूर्य की ज्योति अमर,
वह अन्धकार की चाँदनी ।

~ रामविलास शर्मा

  Apr 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment