चाँदी की झीनी चादर-सी
फैली है वन पर चाँदनी,
चाँदी का झूठा पानी है
यह माह-पूस की चाँदनी ।
खेतों पर ओस-भरा कुहरा,
कुहरे पर भीगी चाँदनी,
आँखों में बादल-से आँसू,
हँसती है उन पर चाँदनी ।
दुख की दुनिया पर बुनती है
माया के सपने चाँदनी,
मीठी मुसकान बिछाती है
भीगी पलकों पर चाँदनी ।
लोहे की हथकड़ियों-सा दुख,
सपनों-सी झूठी चाँदनी,
लोहे से दुख को काटे क्या
सपनों-सी मीठी चाँदनी ।
यह चाँद चुरा कर लाया है
सूरज से अपनी चाँदनी,
सूरज निकला, अब चाँद कहाँ ?
छिप गयी लाज से चाँदनी ।
दुख और कर्म का यह जीवन,
वह चार दिनों की चाँदनी,
यह कर्म-सूर्य की ज्योति अमर,
वह अन्धकार की चाँदनी ।
~ रामविलास शर्मा
Apr 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment