ज़रा आहिस्ता बोल
आहिस्ता
धरती सहम जाएगी
ये धरती फूल और कलियों की सुंदर सज है नादाँ
गरज कर बोलने वालों से कलियाँ रूठ जाती हैं
ज़रा आहिस्ता चल
आहिस्ता
धरती माँ का हृदय है
इस हृदय में तेरे वास्ते भी प्यार है नादाँ
बुरा होता है जब धरती किसी से तंग आती है
तिरी आवाज़
जैसे बढ़ रहे हों जंग के शोले
तिरी चाल
आज ही गोया उठेंगे हश्र के फ़ित्ने
*हश्र=क़यामत; फ़ित्ने=बलवे
मगर नादान ये फूलों की धरती ग़ैर-फ़ानी है
कई जंगें हुईं लेकिन ज़मीं अब तक सुहानी है
*ग़ैर-फ़ानी=जिसका नाश न हो सके
~ सलाम मछलीशहरी
Apr 27, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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