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Tuesday, April 7, 2015

नयनों की रेशम डोरी

Sohanlal Dwivedi

नयनों की रेशम डोरी से
अपनी कोमल बरज़ोरी से।

रहने दो इसको निर्जन में
बाँधो मत मधुमय बन्धन में,
एकाकी ही है भला यहाँ,
निठुराई की झकझोरी से।

अन्तरतम तक तुम भेद रहे,
प्राणों के कण कण छेद रहे।
मत अपने मन में कसो मुझे
इस ममता की गँठजोरी से।

निष्ठुर न बनो मेरे चंचल
रहने दो कोरा ही अँचल,
मत अरुण करो हे तरुण किरण।
अपनी करुणा की रोरी से।

~ सोहनलाल द्विवेदी

  Apr 25, 2011| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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