लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
इस पल की गरिमा पर जिनका
थोड़ा भी अधिकार नहीं है
इस क्षण की गोलाई देखो
आसमान पर लुढ़क रही है
नारंगी तरुणाई देखो
दूर क्षितिज पर बिखर रही है
पक्ष ढूंढते हैं वे जिनको
जीवन ये स्वीकार नहीं हैं
नाप नाप के पीने वालों
जीवन का अपमान न करना
पल पल लेखा जोखा वालों
गणित पे यूँ अभिमान न करना
नपे तुले वे ही हैं जिनकी
बाहों में संसार नहीं है
ज़िंदा डूबे डूबे रहते
मृत शरीर तैरा करते हैं
उथले उथले छप छप करते
गोताखोर सुखी रहते हैं
स्वप्न वही जो नींद उडा दे
वरना उसमे धार नहीं है
कहाँ पहुँचने की जल्दी है
नृत्य भरो इस खालीपन में
किसे दिखाना तुम ही हो बस
गीत रचो इस घायल मन में
पी लो बरस रहा है अमृत
ये सावन लाचार नहीं है
कहीं तुम्हारी चिंताओं की
गठरी पूँजी ना बन जाए
कहीं तुम्हारे माथे का बल
शकल का हिस्सा न बन जाए
जिस मन में उत्सव होता है
वहाँ कभी भी हार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
~ प्रसून जोशी
वर्तमान से प्यार नहीं है
इस पल की गरिमा पर जिनका
थोड़ा भी अधिकार नहीं है
इस क्षण की गोलाई देखो
आसमान पर लुढ़क रही है
नारंगी तरुणाई देखो
दूर क्षितिज पर बिखर रही है
पक्ष ढूंढते हैं वे जिनको
जीवन ये स्वीकार नहीं हैं
नाप नाप के पीने वालों
जीवन का अपमान न करना
पल पल लेखा जोखा वालों
गणित पे यूँ अभिमान न करना
नपे तुले वे ही हैं जिनकी
बाहों में संसार नहीं है
ज़िंदा डूबे डूबे रहते
मृत शरीर तैरा करते हैं
उथले उथले छप छप करते
गोताखोर सुखी रहते हैं
स्वप्न वही जो नींद उडा दे
वरना उसमे धार नहीं है
कहाँ पहुँचने की जल्दी है
नृत्य भरो इस खालीपन में
किसे दिखाना तुम ही हो बस
गीत रचो इस घायल मन में
पी लो बरस रहा है अमृत
ये सावन लाचार नहीं है
कहीं तुम्हारी चिंताओं की
गठरी पूँजी ना बन जाए
कहीं तुम्हारे माथे का बल
शकल का हिस्सा न बन जाए
जिस मन में उत्सव होता है
वहाँ कभी भी हार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको
वर्तमान से प्यार नहीं है
~ प्रसून जोशी
Apr 23, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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