अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
इस ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाये तो तनहाई का सहरा देखूँ
शाम भी हो गयी, धुधला गयीं आँखें मेरी
भूलने वाले, मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ
एक-एक करके मुझे छोड़ गयीं सब सखियाँ
आज मैं खुद को तेरी याद में तन्हा देखूँ
काश संदल! से मेरी मांग उजाले आकर
इतने गैरों में वही हाथ, जो अपना देखूँ
तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जाने-हयात!
जाने कुओं तेरे लिए दिल को धड़कता देखूँ
बंद करके मेरी आँखें वो शरारत से, हँसे
बुझे जाने का मैं हर रोज़ तमाशा देखूँ
सब जिदें उसकी मैं पूरी करूँ, हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ
मुझपे छा जाए वो बरसात की खुशबू की तरह
अंग-अंग अपना उसी रूट में महकता देखूँ
फूल की तरह मेरे जिस्म का हर लब खिल जाये
पंखड़ी-पंखड़ी उन होंठों का साया देखूँ
मैंने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ
तू मेरी तरह से यकता!! है, मगर मेरे हबीब!!!
जी में आता है, कोई और भी तुझ-सा देखूँ
टूट जाएँ कि पिघल जाएँ मेरे कच्चे घड़े
तुझको मैं देखूँ की ये आह का दरिया देखूँ !
! = चन्दन, !! = निराला, !!! = प्रियतम
~ परवीन शाकिर
Oct 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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