जब दूर कहीं कोयल बोले
रजनी घूँघट के पट खोले
मेरे मन के आँगन में प्रिय
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
जब काले बादल घिर आये
मंजुल सावन की रितु आए
बरखा की रिमझिम बूँदें बन
तुम मन की प्यास बुझा जाना
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
मधुमास मधुर रस जब घोले
पुलकित सारा अंचल डोले
हे प्रियतम तब तुम आ जाना
उपवन में पुष्प खिला जाना
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
जब पायल के घुंघरु बोलें
तन में विद्युत लहरी डोले
उर्मिल तुम बनकर के अनंग
मधुरिम मकरंद लुटा जाना
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
हृदय वेदना से भर जाए
मन में विलास जब कुम्हलाए
सागर की लघु लहरी बनकर
मन में विश्वास जगा जाना
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
एकाकी जीवन में प्रिय जब
नयनों में बादल घिर आए
सरस सुधा सरसाकर प्रिय
मन के संताप मिटा जाना
तुम स्नेहिल दीप जला जाना
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