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Tuesday, June 10, 2014

सावन की पुरवइया ग़ायब

सावन की पुरवइया ग़ायब
पोखर, ताल-तलइया ग़ायब

कट गए सारे पेड़ गाँव के
कोयल औ' गोरइया ग़ायब

कच्चे घर तो पक्के बन गए
हर घर से अँगनइया ग़ायब

सोहर, कजरी, फगुआ भूले
बिरहा, नाच-नचइया ग़ायब

नोट निकलते ए टी एम से
पैसा, आना, पइया ग़ायब

दरवाज़े पर कार खड़ी है
बैल-भैंस और गइया ग़ायब

सुबह हुई तो चाय की चुस्की
चना-चबेना, लइया ग़ायब

भाभी देख रही हैं रस्ता
शहर गए थे, भइया ग़ायब

~ देवमणि पांडेय
 


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