अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा साहब
अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब
*इब्तिदा=शुरुआत
न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुमको
हुज़ूर, जाने वफ़ा और हम-नवाँ साहब
*लक़ब=उपनाम
तुम्हारे याद में तारे शुमार करती हूँ
न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब
किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम
हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब
*ज़ीस्त=ज़िंदगी; उनवान=शीर्षक; इंतिहा=हद
तुम्हारा चेहरा मेरे अक्स से उभरता है
न जाने कौन बदलता है आईना साहब..
*अक्स=छवि
राह-ए-वफ़ा में ज़रा एहतियाम लाज़िम है
हर एक गाम पे होता है हादसा साहब
*लाज़िम=ज़रूरी
सियाह रात है माहताब बन के आ जाओ
ये 'इन्दिरा' के लबों पर है इल्तिज़ा साहब
~ इन्दिरा वर्मा
Jun 8, 2014| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment