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Sunday, June 8, 2014

अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा



अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा साहब
अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब
*इब्तिदा=शुरुआत

न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुमको
हुज़ूर, जाने वफ़ा और हम-नवाँ साहब
*लक़ब=उपनाम

तुम्हारे याद में तारे शुमार करती हूँ
न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब

किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम
हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब
*ज़ीस्त=ज़िंदगी; उनवान=शीर्षक; इंतिहा=हद

तुम्हारा चेहरा मेरे अक्स से उभरता है
न जाने कौन बदलता है आईना साहब..
*अक्स=छवि

राह-ए-वफ़ा में ज़रा एहतियाम लाज़िम है
हर एक गाम पे होता है हादसा साहब
*लाज़िम=ज़रूरी

सियाह रात है माहताब बन के आ जाओ
ये 'इन्दिरा' के लबों पर है इल्तिज़ा साहब

~ इन्दिरा वर्मा
 
  Jun 8, 2014| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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