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Wednesday, June 11, 2014

ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी


ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
के सँग तुझपे गिरे और ज़ख्म आये मुझे
*मोजेज़ा=चमत्कार; सँग=पत्थर

वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बद-गुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
*इक़रार=हामी; बदगुमाँ=शक में पड़ना

वो मेरा दोस्त है सारे जहाँन को मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
*जहाँन=दुनिया; दग़ा=धोखा

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ‘क़तील’
ग़मे हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
*ज़ात=ख़ुद; ग़मे हयात=ज़िंदगी के दु:ख

~ क़तील शिफ़ाई

1/30/2014 

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