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Wednesday, June 11, 2014

मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ।
और रात का एक एक तारा ,
जानता है दर्द तुम्हारा....
स्वप्नों की दुनिया में,
जब सारा जहाँ होता है गुम,
बैचैन होता है तब बाहर आने के लिए
तुम्हारा दर्द ,
तुम्हारी झील सी आंखों से।

एक 'नदी' उमंगों से छलकती हुई सी,
भरी खुशियों से और
बांटती पल हँसी के । सबको
तब एक दिन
घोला जहर 'किसी' ने,
मर गयी मछलियाँ सारी
ग्रहण लगा खुशियों को
अब
नदी बहती है मगर
है नमकीन आन्सुयों सी बस,
मैं जानता हूँ।

वो प्रेम गीत,
जो लिखे थे कभी महकदार शैली में
आज सड़ांध मारते हैं।
तुम्हारा विश्वास
जो अब चोटिल हो चुका है
'अमृत' पान से,
उसे
जरुरत है सच्चाई के मरहम की,
मेरे रहस्यों की साथी
बस इतना समझ लो,
ये दर्द बड़ा ऊबड़ खाबड़ है,
बिल्कुल जिन्दगी जैसा;
और जिन्दगी
नदी के बहाव की तरह सीधी सपाट नही
पहाड़ी रास्ते की तरह
टेढ़ी मेढ़ी और
दुश्वार होती है।

~ दिनेश आदित्य

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