Disable Copy Text

Wednesday, June 11, 2014

कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में


कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या

इक आईना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या

जब हम ही न महके तो साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या जल जाओ तो क्या

~
उबैदुल्लाह अलीम

1/17/2014

No comments:

Post a Comment