कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या
कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या
इक आईना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या
मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
जब हम ही न महके तो साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या जल जाओ तो क्या
~ उबैदुल्लाह अलीम
1/17/2014
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