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Wednesday, June 11, 2014

किसलिए कीजे बज़्म-आराई


किसलिए कीजे बज़्म-आराई
पुर-सुकूँ हो गई है तऩ्हाई
*बज़्म-आराई=महफ़िल सजाना; पुर-सुकूँ=शांति-पूर्वक

फ़िर् ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है
फ़िर ख़यालात ने ली अंगड़ाई

यूँ सुकूँ-आशना हुए लम्हे
बूँद में जैसे आए गहराई
*सुकूँ-आशना=शांत

इक से इक वाक़िआ हुआ लेकिन
न गई तेरे ग़म की यकताई
*वाक़िआ=घटना; यकताई=अनोखापन

कोई शिकवा न ग़म, न कोई याद
बैठे-बैठे बस आँख भर आई

ढलकी शानों से हर यकीं की क़बा
ज़िन्दगी ले रही है अंगड़ाई
*शानों=कन्धों; यकीं की क़बा=विश्वास का वस्त्र

~ जावेद अख़्तर


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