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Sunday, June 8, 2014

नई सुबह पर नज़र है

नई सुबह पर नज़र है, मगर आह ये भी डर है
ये सहर रफ़्ता-रफ़्ता, कहीं शाम तक न पहुँचे।

*सहर=सुबह; रफ़्ता-रफ़्ता=धीरे धीरे

~ शकील बदायूँनी

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