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Tuesday, June 10, 2014

समझौते स्वीकार हैं सारे


समझौते स्वीकार हैं सारे, एक दफ़ा आवेदन तो कर
मैं तो सारा बदल गया, तू रत्ती भर परिवर्तन तो कर

चल तू बतला धीरे-धीरे चलूँ, या बिल्कुल रुकना होगा
ऐसा कर तू निश्चित कर ले, मुझको कितना झुकना होगा
मेरा विश्लेषण कर ले, पर ख़ुद का भी मूल्यांकन तो कर

सच ये है तेरे तरकश में शक्तिशाली तर्क बहुत हैं
लेकिन पगली स्वाभिमान और अभिमान में फ़र्क़ बहुत हैं
ग़लती चाहे जिसकी भी है, अब कोई संशोधन कर ले

उनको चल मैं काट रहा हूँ, जो पीड़ा सींची है मैंने
मैं ख़ुद बाहर आ जाता हूँ, जो रेखा खींची है मैंने
तू भी अपनी हठ रेखा का, थोड़ा-सा उल्लंघन तो कर

मेरी पलकें ख़ारी हैं तो छुप-छुप कर तू भी रोती है
ये भी सच है झुक जाने में पीड़ा तो काफ़ी होती है
अच्छा झुक मत, पर झुकने का थोड़ा-सा प्रदर्शन तो कर

~ कुमार पंकज

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