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Sunday, June 8, 2014

यशोधरा तुम उपेक्षित हुई हो महान नहीं





















यशोधरा तुम उपेक्षित हुई हो महान नहीं
तुम्हे तो आवरण ओढाया गया महानता का
क्यूँ नहीं किया प्रतिरोध तुमने -
नहीं तुम कैसे करती तुम्हे ज्ञात ही कब था
विश्वासघात ही तो हुआ था तुमसे - अनिभिग्य थी तुम
सिद्धार्थ में तो इतना भी साहस नहीं था
वह तुम्हे बता कर तो जाते
कैसे मिला सकते थे दृष्टि
तुम्हारे नेत्रों में तैरते प्रश्नों का
कोई उत्तर भी तो न था उनके पास
रात्री के अन्धकार में सोई पत्नी को छोड़ कर
दबे पाँव निकल कर विवाहित जीवन से
पलायन करने वाला पुरुष
भगवान कहलाया पूज्य हुआ पूजित ही रहेगा
युगों से एवं आने वाले अनेक युगों तक
परंतु संपूर्ण जीवन विरह के तपते मरुस्थल में
भटकती नारी तुम्हे क्या मिला ?
त्याज पत्नी उपेक्षिता और पीड़ा का दंश ?

कभी कभार याद किया जाता है तुमको भी
पर उसमे भी सिद्धार्थ ही महान कहलाते है
अपनी युवा सुंदरी विवाहिता धर्मपत्नी को त्याग
कितना महान कार्य किया युवराज ने !

सुनो - तथागत यदि तुम्हे यही निर्णय लेना था
तो वरण क्यों किया यशोधरा का ? बता कर तो जाते
तो कदाचित संपूर्ण जीवन पीड़ा का वृश्चिकदंश न चुभता
विरहणी यशोधरा के सूखे अधर तीनों प्रहर यह न दोहराते
सखी वो कह कर तो जाते - आह सखी वो कुछ तो कह जाते
महान तथागत तुम भले ही भगवान बुद्ध कहलाओ परंतु
सुनो सिद्धार्थ तुम रहोगे यशोधरा के अपराधी ही --
यद्यपि संसार को तुमने अहिसा के तमाम मार्ग दिखाए -
पत्नी के साथ यह हिंसा ही तो की तुमने
संपूर्ण जीवन विवाहिता होते हुए भी पति विहीन रही
ये कैसा आदर्श रखा तुमने संसार के समक्ष -
आज भी कहीं कोई यशोधरा मौन मूक क्रन्दन करती है
महान बना दी जाती है वह बिना उसकी वेदना को समझे ही
उसकी संपूर्ण पीड़ा को त्याग में बदल दिया जाता है
भला कब कोई यशोधरा सिद्धार्थ से विलग हो पल भी भी जी पाई है
समय बदला है यशोधरायें आज भी वही है
उनके नम नेत्रों में तैरते प्रश्न भी वही
ज्ञात तो कराते --मेरा अपराध क्या था
युग बीतते जायेंगे सिद्धार्थ बदलते जायेंगे
किंतु यशोधरायें वही रहेंगी --और उनके प्रश्न भी
इनके मौन इनके त्याग इनके युवा स्वप्नों के दहन से ही
कोई राजकुमार भगवान बुद्ध की अवस्था को प्राप्त हुआ
तो आज कोई साधारण पुरुष अपने जीवन की
चिरप्रतीक्षित लालसाओं को पूर्ण करने में समर्थ हुआ
खोया तो केवल नारी ने --

~ दिव्या शुक्ला

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