किस सुधि - वसन्त का सुमन तीर ,
कर गया मुग्ध मानस अधीर ?
वेदना गगन से रजत ओस,
चू - चू भरती मन - कंज - कोष,
अलि - सी मंडराती विरह -पीर |
मंजरित नवल मृदु देह डाल,
खिल - खिल उठता नव पुलक - जाल,
मधु कन सा छलका नयन -नीर |
अधरों से झरता स्मित पराग,
प्राणों में गूंजा नेह - राग,
सुख का बहता मलयज समीर |
धुल -धुल जाता यह हिम - दुराव
गा -गा उठते चिर मूक - भाव,
अलि सिहर - सिहर उठता शरीर |
~ महादेवी वर्मा
No comments:
Post a Comment