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Wednesday, June 11, 2014

कीचड़-कालिख से सने हाथ


 
कीचड़-कालिख से सने हाथ
इनको चूमो
सौ कामिनियों के लोल कपोलों से बढ़कर
जिसने चूमा दुनिया को अन्न खिलाया है
आतप-वर्षा-पाले से सदा बचाया है।

श्रम-सीकर से लथपथ चेहरे
इनको चूमो
गंगा-जमुना की लोल-लहरियों से बढ़कर
माँ-बहनों की लज्जा जिनके बल पर रक्षित
बुन चीर द्रौपदी का हर बार बढाया है।

कुश-कंटक से क्षत-विक्षत पग
इनको चूमो
जो लक्ष्मी-ललित क्षीर-सिंधु के
चर्चित चरणों से बढ़कर
जिनका अपराजित शौर्य
धवल हिम-शिखरों पर महिमा-मण्डित
मानवता का वर्चस्व सौरमण्डल स्पंदित कर आया है।

~ शिवमंगल सिंह 'सुमन'

1/18/2014

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