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Sunday, June 8, 2014

बदलता है समय

बदलता है समय
पर ऐसे नहीं की एकदम सब कुछ बदल जाये
और सब कुछ हो जाये ठीक !
ऐसा नहीं होता
कि एकाएक शहर के सारे कौवे हो जाएँ सफ़ेद
या पंख लगे हाथी चुगें आपकी छत पर चावल
समय बदलता है उतना ही धीरे
जितना कि 'क' के बाद 'ख' लिखती है धीमे-से
कोई बुढ़िया
और तब बदल जाता है इतिहास
जब कोई कह दे तुलसी के साथ मीर और ग़ालिब भी
बदलता तो तब भी है बहुत कुछ
जब भूल कर सब कुछ एक लड़की ठीक अपने साथी की तरह
मारती है पहला कश
और बाहर फेंकते हुये धुंवा
मुस्काती है धीमे से।

धीमे से बदल जाते हैं सपने
रंग तक बदल जाता है पानी का
सपने
लगने लगते हैं थोड़े और पराये
और खारा पानी हो जाता है और थोड़ा खारा
फेंफड़ों और हवा के बीच अक्सर बदल जाता है संवाद
हालाँकि यह बदलाव उतना ही धीमे होता है
जितना धीमे और चुपचाप बदलता है बालों का रंग
कोई नहीं पढ़ पाता इसे
लेकिन यह भी एक बदलाव है
जब रात की एकांत खुमारी में
या छुपकर घर के किसी कोने में एक शैतान लड़की
करती है एक शरारत भरा एस एम एस
अपने युवा प्रेमी को
तब भी बदलता है बहुत कुछ।

~ राजेंद्र कैड़ा

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