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Wednesday, June 11, 2014

ओ पखेरू लौट के आना


ओ पखेरू लौट के आना
आ कर तुम मुझे बताना
उड़ चले क्यों नीड़ कर सूने
क्या पाया, क्या खोया तूने
बीच सफ़र में क्या क्या बीता
नैनों में कौन स्वप्न है जीता
कैसी है उस पार की रातें
करना मुझसे जीत हार की बातें

एक हूँ मैं कितने खूटें हैं
स्वप्न मेरे सब टूटे हैं
आँख क्षितिज टटोल रही है
हर गांठ बंधन की बोल रही है
तुम नज़र मेरी बन जाना
आ कर तुम मुझे बताना
सौम्य कोई उस पार की क्रीड़ा
स्थिरता से भिन्न अन्य कोई पीड़ा
जिससे दो-चार हुये तुम
कैसे उस पार हुये तुम ।

तेरी राह तकेंगी अँखियाँ
डाल डाल और सब पत्तियाँ
कोटर पेड़ का बहुत छोटा है
जाने वाला फिर कब लौटा है
मस्त हो पूरा कर उस उड़ान को
भूल न जाना पर उस थकान को
जब भी करना कहीं बसेरा
तनिक ध्यान कर लेना मेरा ।

यादों के ढेर पर मैं हूँ ज़िंदा
उड़ चला देखो एक और परिंदा ।

~ मोहिंदर कुमार

2/15/2014 

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