Disable Copy Text

Sunday, June 8, 2014

चाँदनी में टहल रहीं होगी
















जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी

चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
*अब्र=बादल

सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी
* शफ़क़=क्षितिज; अन्दाम=खूबसूरत

सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी

चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी

नील को झील नाक तक पहने
सन्दली जिस्म मल रही होगी

जौन एलिया

No comments:

Post a Comment