जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी
चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी
*अब्र=बादल
सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी
* शफ़क़=क्षितिज; अन्दाम=खूबसूरत
सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी
चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी
नील को झील नाक तक पहने
सन्दली जिस्म मल रही होगी
~ जौन एलिया
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