
उपवन में किसलय आतुर हैं, फिर से खुल मुस्काने को
कलिका भी कल इतरायेगी, दिन दूर नहीं वो आने को
ऋतु आती है ऋतु जाती है धरती हंसती, मनुहारती है
पर हम एकाकी, तरस रहे, भंवरें का गुंजन गाने को ।
सुन्दरता सुन्दर लगती, हो ऎसा मन की बगियन में,
फ़िर वसंत आयें जीवन में...!
~ अशोक सिंह
Apr 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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