
ज़ुल्मत के तलातुम से उबर क्यों नहीं जाते
उतरा हुआ दरिया है गुजर क्यों नही जाते
हमराह में आकर के खडे हो तो गये हैं
किस किस को बताएंगे कि घर क्यों नहीं जाते
बादल हो तो बरसो कभी बेआब ज़मीं पर
खुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यों नहीं जाते
जब डूब ही जाने का यकीं है तो न जाने
ये लोग सफ़ीना से उतर क्यों नहीं जाते
~ अमीर कज़लबाश
Apr 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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