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Sunday, April 5, 2015

ज़ुल्मत के तलातुम से



ज़ुल्मत के तलातुम से उबर क्यों नहीं जाते
उतरा हुआ दरिया है गुजर क्यों नही जाते

हमराह में आकर के खडे हो तो गये हैं
किस किस को बताएंगे कि घर क्यों नहीं जाते

बादल हो तो बरसो कभी बेआब ज़मीं पर
खुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यों नहीं जाते

जब डूब ही जाने का यकीं है तो न जाने
ये लोग सफ़ीना से उतर क्यों नहीं जाते

~ अमीर कज़लबाश


   Apr 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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