Disable Copy Text

Sunday, April 5, 2015

डूबते सूरज का मंज़र



डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ
फिर बुलाती हैं किसी को बादबानी कश्तियाँ

एक अजब सैलाब सा दिल के निहां-ख़ाने में था
रेत, साहिल, दूर तक पानी ही पानी कश्तियाँ

मौजे-दरिया ने कहा क्या, साहिलों से क्या मिला
कह गईं कल रात सब अपनी कहानी कश्तियाँ

खामशी से डूबने वाले हमें क्या दे गए
एक अनजाने सफ़र की कुछ निशानी कश्तियाँ

एक दिन ऐसा भी आया हल्क़-ए- गरदाब में
कसमसा कर रह गईं ख़्वाबों की धानी कश्तियाँ

आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में "शमींम"
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ

~ शमीम फ़ारूक़ी

 
   Apr 23, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment