
शोला हूँ धधकने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुंह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता
गिरती हुइ दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता
माथे के पसीने की महक आए न जिससे
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता।
हमदर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र'
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता
~ मुज़फ़्फ़र वारसी
Feb 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment