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Monday, April 6, 2015

शोला हूँ धधकने की गुज़ारिश



शोला हूँ धधकने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुंह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता

गिरती हुइ दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता

माथे के पसीने की महक आए न जिससे
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता।

हमदर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र'
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता

~ मुज़फ़्फ़र वारसी

  Feb 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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