
क़िस्सा मिरे जुनूँ का बहुत याद आयेगा
जब-जब कोई चिराग़ हवा में जलायेगा
रातों को जागते हैं, इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बन्द आँखें तो फिर लौट जायेगा
कब से बचा के रक्खी है इक बूँद ओस की
किस रोज़ तू वफ़ा को मिरी आज़मायेगा
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बड़ी काम आएँगी
जिस दिन हमारे शहर में सैलाब आयेगा
*सैलाब=बाढ़
दिल को यक़ीन है कि सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क़
कोई फ़सुर्दा दिल ये ग़ज़ल गुनगुनायेगा
*सर-ए-रहगुज़ार-ए-इश्क़=प्रेम की राह में; फ़सुर्दा=उदास
~ शहरयार
Mar 10, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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