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Wednesday, April 1, 2015

न आरजू न तमन्ना, कहाँ चले आये



न आरजू न तमन्ना, कहाँ चले आये
थकन से चूर ये तनहा कहाँ चले आये

रुकी-रुकी सी हवाए घुटा-घुटा माहौल
ये रात-रात अँधेरा कहाँ चले आये

घरोंदा एक बनाया था हमने ख्वाबो का
गिरा के खुद वो घरोंदा कहाँ चले आये

यहाँ तो दिल को भी दुख न आ सके शायद
यहाँ का दर्द भी झूठा, कहाँ चले आये

ये एक चिराग सा जलता है आज भी दिल में
अरे हवा का ये झोंका, कहाँ चले आये

~ अहमद हमदानी


  Nov 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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