
न आरजू न तमन्ना, कहाँ चले आये
थकन से चूर ये तनहा कहाँ चले आये
रुकी-रुकी सी हवाए घुटा-घुटा माहौल
ये रात-रात अँधेरा कहाँ चले आये
घरोंदा एक बनाया था हमने ख्वाबो का
गिरा के खुद वो घरोंदा कहाँ चले आये
यहाँ तो दिल को भी दुख न आ सके शायद
यहाँ का दर्द भी झूठा, कहाँ चले आये
ये एक चिराग सा जलता है आज भी दिल में
अरे हवा का ये झोंका, कहाँ चले आये
~ अहमद हमदानी
Nov 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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