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Friday, April 3, 2015

है सब नसीब की बातें


है सब नसीब की बातें खता किसी की नहीं
ये जि़दगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।

तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।

वो होंठ सी के मेरे पूछता है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।

बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चराग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।

'नज़ीर सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।

~ मीर नज़ीर बाकरी


  Jul 29, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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