जश्ने आज़ादी है, मौका है
चलो मक्खी मारते हैं
कुछ नया गर कर ना पाए तो नेताओं को ही धिक्कारते है
पाँच मिनट का ध्वजारोहण है फिर पूरे दिन खाली हैं
निन्दा-रस में बड़ा मजा है
जुबान कहाँ थकने वाली है
मौका है आज दस्तूर भी है
इस परम्परा को स्वीकारते है
चलो मक्खी मारते हैं
कुछ नया गर कर ना पाए तो नेताओं को ही धिक्कारते है
पाँच मिनट का ध्वजारोहण है फिर पूरे दिन खाली हैं
निन्दा-रस में बड़ा मजा है
जुबान कहाँ थकने वाली है
मौका है आज दस्तूर भी है
इस परम्परा को स्वीकारते है
जश्ने आज़ादी है, मौका है
चलो मक्खी मारते हैं
चलो मक्खी मारते हैं
~ सर्वेश अस्थाना
Submitted by: Ashok Singh
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