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Friday, April 3, 2015

कल्पवृक्षों के सुनहरे फूल हैं ये



कल्पवृक्षों के सुनहरे फूल हैं ये
दर्द की आकाशवाणी के वचन हैं
तू इन्हें दिल के खज़ाने में सँजो ले
गीत ये ज़िन्दा समन्दर के रतन हैं।

रामगिरि के यक्ष से ये कब अलग हैं
और कब दमयंतियों से दूर हैं ये
ज़हर का प्याला पिये सुकरात हैं ये
ख़ुद ब ख़ुद सूली चढ़े मंसूर हैं ये
छोड़ने पर भी न छूटेंगे कभी, ये
भावना के मुँह लगे आदिम व्यसन हैं;

~ सोम ठाकुर


  Jul 6, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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