कल्पवृक्षों के सुनहरे फूल हैं ये
दर्द की आकाशवाणी के वचन हैं
तू इन्हें दिल के खज़ाने में सँजो ले
गीत ये ज़िन्दा समन्दर के रतन हैं।
रामगिरि के यक्ष से ये कब अलग हैं
और कब दमयंतियों से दूर हैं ये
ज़हर का प्याला पिये सुकरात हैं ये
ख़ुद ब ख़ुद सूली चढ़े मंसूर हैं ये
छोड़ने पर भी न छूटेंगे कभी, ये
भावना के मुँह लगे आदिम व्यसन हैं;
~ सोम ठाकुर
दर्द की आकाशवाणी के वचन हैं
तू इन्हें दिल के खज़ाने में सँजो ले
गीत ये ज़िन्दा समन्दर के रतन हैं।
रामगिरि के यक्ष से ये कब अलग हैं
और कब दमयंतियों से दूर हैं ये
ज़हर का प्याला पिये सुकरात हैं ये
ख़ुद ब ख़ुद सूली चढ़े मंसूर हैं ये
छोड़ने पर भी न छूटेंगे कभी, ये
भावना के मुँह लगे आदिम व्यसन हैं;
~ सोम ठाकुर
Jul 6, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment