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Sunday, April 5, 2015

फिर नहीं सो सके, एक सदी के लिए



और फिर यूँ हुआ, रात एक ख्वाब ने जगा दिया
फिर यूँ हुआ चाँद की वो डली घुल गयी
और यूँ हुआ, ख्वाब की वो लड़ी खुल गयी
चलती रही बेनूरियां, चलते रहे अंधेरों की रौशनी के तले
फिर नहीं सो सके, एक सदी के लिए हम दिलजले

और फिर यूँ हुआ, सुबह की धूल ने उड़ा दिया
फिर यूँ हुआ, चेहरे के नक्श सब धुल गए
और यूँ हुआ, गर्द थे गर्द में रुल गए
तन्हाईयाँ ओढ़े हुए, गलते रहे भीगे हुए आँसुओं से गले
फिर नहीं सो सके, एक सदी के लिए हम दिलजले

~ गुलज़ार

 
   Mar 26, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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