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Thursday, April 2, 2015

मेरी बेखुदी का तसलसुल बनाये




मेरी बेखुदी का तसलसुल बनाये नहीं रख सका
ज्यादा दिनों तक वो खुद को सजाये नहीं रख सका
बेखुदी=बेसुधपन, तसलसुल=निरंतरता

मै खोया तो इसमें ज्यादा खता भी उसी की ही थी
वही भीड़ में मुझ पे आँखे जमाए नहीं रख सका

सरे-आईना भी सरापा मेरा धुंध ही धुंध है
मै खुद को कभी अक्स के साये-साये नहीं रख सका
सरे-आईना=दर्पण के सामने, सरापा=सर से पाँव तक, अक्स=प्रतिबिम्ब

ज़माने से शिकवा तो खुद को तसल्ली ही देने सा है
मै खुद उसके बारे में कोई भी राये नहीं रख सका

कुछ ऐसा हुआ फिर की मुझको अँधेरे ही रास आ गये
तेरे लौटने तक मै शम्मे जलाये नहीं रख सका

~
शारिक कैफ़ी
  Oct 12, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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