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Friday, April 3, 2015

भले दिनों की बात है



भले दिनों की बात है,
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि हुस्न-ए-ताम हो
न देखने में आम सी

ना ये कि वो चले तो
कहकशां सी रहगुजर लगे
मगर वो साथ हो तो फिर
भला भला सफर लगे
*कहकशां=आकाश-गंगा

कोई भी रुत हो उसकी छाब
फज़ां का रंगो रूप थी
वो गर्मियों की छाँव थी
वो सर्दियों की धूप थी
*छाब=छवि

ना ऍसी खुश लिबासियाँ
कि सादगी गिला करे
न इतनी बेतक़ल्लुफ़ी
कि आईना हया करे

ना मुद्दतों जुदा रहे
ना साथ सुबह-ओ-शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
ना ये कि इज़्न-आम हो


ना आशिकी जुनून की
कि जिंदगी अज़ाब हो
न इस कदर कठोरपन
कि दोस्ती खराब हो
*अजाब=कष्टप्रद

सुना है एक उम्र है
मुआमलात-ए-दिल की भी
विसाल-ए-जां फिज़ा तो क्या
फिराक़-ए-जां गुसल की भी
*मुआमलात=मामला; विसाल=मिलन; फिराक़=वियोग

सो एक रोज़ क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गयी
मैं इश्क को अमर कहूँ
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गयी

मैं इश्क का असीर था
वो इश्क़ को क़फ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
बदतरज़ हवस कहे
*असीर=बन्दी; कफस=पिंजड़ा

शज़र, हजर नहीं के हम
हमेशा पा-बे-गुल रहें
ना डोर हैं कि रस्सियाँ
गले में मुस्तकिल रहें
*शजर=पेड़; हजर=पत्थर; पा=पैर; गुल=फूल; मुस्तकिल=मजबूती से डाला हुआ
 

मैं कोई पेटिंग नहीं
कि एक फ्रेम में रहूँ
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूँ

तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं इस मिज़ाज़ की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं

ना उस को मुझ पे मान था
ना मुझ को उस पे जाम ही
जो अहद ही कोई ना हो
तो क्या ग़म-ए-शिक़स्तगी
*अहद=प्रतिज्ञा; शिक़स्त=हार

सो अपना अपना रास्ता
हँसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया

भली सी एक शक्ल थी
भली सी उस की दोस्ती
अब उस की याद रात दिन
नहीं मगर कभी-कभी...!

~ अहमद फ़राज़

 
  Jun 30, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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