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Wednesday, April 1, 2015

इस शहर-ए-खराबी में



इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे

ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा'इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
*ताबिंदा=चमक वाला; पा'इन्दा=हमेशा ज़िंदा रहने वाला

हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे

हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे

कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

~ हबीब जालिब


  Nov 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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