
ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव
मेरी गोद में!
ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव
मेरी गोद में!
दो बड़े मासूम बादल देवताओं से लगाते दाँव
मेरी गोद में!
रसमसाती धूप का ढलता पहर
ये हवाएँ शाम की झुक-झूमकर बरसा गईं
रोशनी के फूल हरसिंगार-से
प्यार घायल साँप-सा लेता लहर
अर्चना की धूप-सी तुम गोद में लहरा गईं
ज्यों झरे केसर तितलियों के परों की मार से
सोनजूही की पँखुरियों से गुँथे ये दो मदन के बान
मेरी गोद में!
हो गये बेहोश दो नाजुक मृदुल तूफ़ान
मेरी गोद में!
ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में
झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन शमाएँ दो
अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं
या फ़रिश्तों के परों की छाँह में
दुबकी हुई सहमी हुई हों पूर्णिमाएँ दो
देवताओं के नयन के अश्रु से धोई हुईं ।
चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब
मेरी गोद में!
सात रंगों की महावर से रचे महताब
मेरी गोद में!
ये बड़े सुकुमार इनसे प्यार क्या?
ये महज आराधना के वास्ते
जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते
हरदम बताये हैं रुपहरे शुक्र के नभ-फूल ने
ये चरण मुझको न दें अपनी दिशाएँ भूलने!
ये खँडहरों में सिसकते स्वर्ग के दो गान मेरी गोद में!
रश्मि-पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान मेरी गोद में!
~ धर्मवीर भारती
Nov 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment