Disable Copy Text

Friday, April 3, 2015

ज़रा आराम से



आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से
तेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अब
इतना कसकर किया आलिंगन
ज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को

आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से
तुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैं
ऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों तो क्या
महल-अटारियों पर भी

न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसना
बतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर

और तुम चाहो तो बहला सकती हो मुझे
जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर

जो हो जाएँगे राख
छूकर सवेरे की किरन

सुबह हुए जाना है मुझे
आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से ।

~ भवानीप्रसाद मिश्र


  Jul 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment