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Friday, April 3, 2015

स्वप्न के भीतर एक स्वप्न



स्वप्न के भीतर एक स्वप्न,
विचारधारा के भीतर और
एक अन्य
सघन विचारधारा प्रच्छन्न !!
कथ्य के भीतर एक अनुरोधी
विर्रुद्ध विपरीत,
नेपथ्य..संगीत!!!
मस्तिष्क के भीतर एक मस्तिष्क,
उसके भी अन्दर एक और कक्ष
कक्ष के भीतर
एक गुप्त प्रकोष्ट और
कोठे के सांवले गुहांधकार में
मज़बूत.. संदूक
दृढ, भारी भरकम
और उस संदूक के भीतर कोई बंद है
यक्ष
या की ओरंगउटांग हाय
अरे! डर यह है..
न उरांग .. उटांग कहीं छूट जाए,
कहीं प्रत्यक्ष न यक्ष हो !
करीने से सजे हुए संस्कृत.. प्रभामय
अध्ययन-गृह में
बहस उठ खड़ी जब होती है -
विवाद में हिस्सा लेता हुआ मैं
सुनता हूँ ध्यान से
अपने ही शब्दों का नाद, प्रवाह और
पाता हूँ अकस्मात्
स्वयं के स्वर में
ओरांगउटांग की बौखलाती हुन्कृत ध्वनिया
एकाएक भयभीत
पाता हूँ पसीने से सिंचित
अपना यह नग्न मन !
हाय - हाय और न जान ले
की नग्न और विद्रूप
असत्य शक्ति का प्रतिरूप
प्राकृत ओरांग..उटांग यह
मुझमे छिपा हुआ है !

स्वयं की ग्रीवा पर
फेरता हूँ हाथ कि
करता हूँ महसूस
एकाएक गर्दन पर उगी हुई
सघन अयाल और
शब्दों पर उगे हुए बाल तथा
वाक्यों में ओरांग..उटांग के
बढ़े हुए नाख़ून!!

दिखती है सहसा
अपनी ही गुच्छेदार मूंछ
जो की बनती है कविता
अपने ही बड़े बड़े दांत
जो की बनते है तर्क और
दीखता है प्रत्यक्ष
बौना यह भाल और
झुका हुआ माथा
जाता हूँ चौंक मैं निज से
अपनी ही बालदार सज से
कपाल की धज से !
और, मैं विद्रूप वेदना से ग्रस्त हो
करता हूँ धड़ से बंद
वह संदूक
करता हूँ महसूस
हाथ में पिस्तौल बन्दूक !!
अगर कहीं पेटी वह खुल जाए,
ओरांगउटांग यदि उसमे से उठ पड़े,
धाएं धाएं गोली दागी जायेगी !!
रक्ताल.. फैला हुआ सब ओर
ओरांगउटांग का लाल-लाल
खून..तत्काल..
ताला लगा देता हूँ मैं पेटी का
बंद है संदूक!!

अब इस प्रकोष्ट के बाहर आ
अनेक कमरों को पार करता हुआ
संस्कृत प्रभामय अध्ययन-गृह में
अदृश्य रूप से प्रवेश कर
चली हुई बहस में भाग ले रहा हूँ!!
सोचता हूँ - विवाद से ग्रस्त कई लोग,
कई तल
सत्य के बहाने
स्वयं को चाहते हैं प्रस्थापित करना !
अहं को, तथ्य के बहाने !
मेरी जीभ एकाएक तालू से चिपकती
अक्ल क्षारयुक्त - सी होती है..
और मेरी आँखें उन बहस करने वालों के
कपड़ों में छिपी हुई
सघन रहस्यमय लम्बी पूँछ देखती !!

और मैं सोचता हूँ...
कैसे सत्य हैं...
ढांक रखना चाहते हैं बड़े बड़े
नाख़ून !!
किसके लिए हैं वे बाघनख !!
कौन अभागा वह !!

~ गजानन माधव मुक्तिबोध


  Aug 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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