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Friday, April 3, 2015

कभी मोम बन के पिघल गया



कभी मोम बन के पिघल गया
कभी गिरते गिरते संभल गया
वो बन के लम्हा गुरेज का
मेरे पास से निकल गया

उसे रोकता भी तो किस तरह
कि वो शख्स इतना अजीब था
कभी तड़प उठा मेरी आह से
कभी अश्क से न पिघल सका

सर-ए-राह मिला वो अगर कभी
तो नज़र चुरा के गुज़र गया
वो उतर गया मेरी आँख से
मेरे दिल से क्यों न उतर सका

वो चला गया जहां छोड़ के
मैं वहा से फिर न पलट सका
वो संभल गया था फ़राज़ मगर
मै बिखर के फिर न सिमट सका

~ अहमद फ़राज़


  Aug 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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