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Monday, April 6, 2015

ऐसा अपनापन भी क्या



ऐसा अपनापन भी क्या जो अजनबी महसूस हो,
साथ रहकर भी मुझे तेरी कमी महसूस हो।

शाख़ पर बैठे परिन्दे कह रहे थे कान में,
क्या रिहाई है कि हरदम बेबसी महसूस हो।

फूल मत दे मुझको, लेकिन बोल तो फूलों से बोल,
जिनको सुनकर तितलियाँ-सी ताज़गी महसूस हो।

दे रहा हूँ आपको अपना पता मैं इसलिए,
याद कर लेना कभी, मेरी कमी महसूस हो।

~ माणिक वर्मा


   Mar 4, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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