
इश्क़ फ़ना का नाम है इश्क़ में ज़िन्दगी न देख
जल्वा-ए-आफ़्ताब बन ज़र्रे में रोशनी न देख
*फ़ना=बर्बादी; जल्वा-ए-आफ़्ताब=सूर्य की आभा
जल्वा-ए-आफ़्ताब बन ज़र्रे में रोशनी न देख
*फ़ना=बर्बादी; जल्वा-ए-आफ़्ताब=सूर्य की आभा
शौक़ को रहनुमा बना जो हो चुका कभी न देख
आग दबी हुई निकाल आग बुझी हुई न देख
तुझको ख़ुदा का वास्ता तू मेरी ज़िन्दगी न देख
जिसकी सहर भी शाम हो उसकी सियाह शबी न देख
*सियाह शबी=अँधेरी रात
~ जिगर मुरादाबादी
Submitted by: Ashok Singh
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