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Sunday, April 5, 2015

इश्क़ फ़ना का नाम है




इश्क़ फ़ना का नाम है इश्क़ में ज़िन्दगी न देख
जल्वा-ए-आफ़्ताब बन ज़र्रे में रोशनी न देख
*फ़ना=बर्बादी; जल्वा-ए-आफ़्ताब=सूर्य की आभा

शौक़ को रहनुमा बना जो हो चुका कभी न देख
आग दबी हुई निकाल आग बुझी हुई न देख

तुझको ख़ुदा का वास्ता तू मेरी ज़िन्दगी न देख
जिसकी सहर भी शाम हो उसकी सियाह शबी न देख
*
सियाह शबी=अँधेरी रात

~ जिगर मुरादाबादी
   Mar 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

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