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Sunday, April 5, 2015

तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र



तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहला कोई और है।
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है।
*मरहला=सफ़र; गुरेज़=पलायन

मेरी चाहतों को न पूछिए, जो मिला तलब के सिवा मिला
मेरी दास्ताँ ही अजीब है, मेरा मसला कोई और है।
*मसला=मामला

वो रहीम है, वो करीम है, वो नहीं कि ज़ुल्म सदा करे
है यक़ीं ज़माने को देखकर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।

मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं, इस सफ़र में है मेरी ज़िन्दगी
मेरी इब्तदा कहीं और है मेरी इंतहा कोई और है।
*इब्तदा=शुरुआत; इंतहा=अंत

मेरा नाम ‘दर्शन’ है खतन, मेरे दिल में है कोई लौ पिघन
मैं हूँ गुम किसी की तलाश में मुझे ढूँढता और है।

~ संत दर्शन सिंह 


   May 9, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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