Disable Copy Text

Monday, April 6, 2015

जो न बन पाई तुम्हारे




जो न बन पाई तुम्हारे
गीत की कोमल कड़ी।

तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है?
तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है?
तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है?
तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है?
आये, या जाये कहीं—
असहाय दर्शन की घड़ी;
जो न बन पाई तुम्हारे
गीत की कोमल कड़ी।

सूझ ने ब्रम्हांड में फेरी लगाई,
और यादों ने सजग धेरी लगाई,
अर्चना कर सोलहों साधें सधीं हाँ,
सोलहों श्रृंगार ने सौहें बदीं हाँ,
मगन होकर, गगन पर,
बिखरी व्यथा बन फुलझड़ी;
जब न बन पाई तुम्हारे
गीत की कोमल लड़ी।

~ माखनलाल चतुर्वेदी

   Mar 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment