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Friday, April 3, 2015

रात ढले होती है आहट



कुछ रात ढले होती है आहट दरे दिल पर
कुछ फूल बिखर जाते हैं मालूम नहीं क्यूँ

मत पूछ नकाबों से तू यारी है हमारी
हम चेहरों से डर जाते हैं मालूम नहीं क्यूँ

हर सुबह तुझे जी से भुलाने का है वादा
हर शाम मुकर जाते हैं मालूम नहीं क्यूँ

~ शाज़ तमनकत


  Sep 11, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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