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Friday, April 3, 2015

मेरी जुबां से सुनिए



चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किस्सा हैं जहां से सुनिए !!

सब को आता नहीं दुनिया को सजा कर जीना,
ज़िंदगी क्या हैं मुहब्बत की जुबां से सुनिए !!

मेरी आवाज़ पर्दा हैं मेरे चेहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए !!

क्या ज़रूरी हैं कि हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात भी अपनी ही मकां से सुनिए !!

~ निदा फ़ाज़ली


  Jul 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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