चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किस्सा हैं जहां से सुनिए !!
सब को आता नहीं दुनिया को सजा कर जीना,
ज़िंदगी क्या हैं मुहब्बत की जुबां से सुनिए !!
मेरी आवाज़ पर्दा हैं मेरे चेहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए !!
क्या ज़रूरी हैं कि हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात भी अपनी ही मकां से सुनिए !!
~ निदा फ़ाज़ली
Jul 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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