
तुमसे मिलना बातें करना अच्छा लगता है
तुम भी लिखना मुझसे मिलकर कैसा लगता है
आते ही जाने की जब वो बातें करता है
उस पल मन में जाने कैसा-कैसा लगता है
यादों के मौसम में जब भी जिससे मिलता हूँ
मुझको तो हर चेहरा उसका चेहरा लगता है
मस्त हवा के झोंके जब-जब दस्तक़ देते हैं
तुम आए हो अक्सर ऐसा धोखा लगता है
अहसासों की सोन नदी में डूबा रहता है
जाने क्यों फिर भी मन मुझको प्यासा लगता है
महक उठी है रजनीगंधा टीक दुपहरी में
उसने मुझको याद किया है ऐसा लगता है
सीपी शंख नदी फुलवारी घण्टों बतियाना
अमराई की छाँव,सभी अब सपना लगता है
~ मनोज अबोध
Nov 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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