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Friday, April 3, 2015

नाश के इस नगर में तुम्हीं



नाश के इस नगर में तुम्हीं एक थे
खोजता मैं जिसे आ गया था यहाँ,
तुम न होते अगर तो मुझे क्या पता
तन भटकता कहाँ, मन भटकता कहाँ,
वह तुम्हीं हो कि जिसके लिए आज तक
मैं सिसकता रहा शब्द में, गान में,
वह तुम्हीं हो कि जिसके बिना शव बना
मैं भटकता रहा रोज श्मशान में
पर तुम्ही अब न मेरी पियो प्यास तो
होंठ पर भी हिमालय गले-व्यर्थ है ।

जब न तुम ही मिले राह पर तो मुझे
स्वर्ग भी गर धरा पर मिले - व्यर्थ है ।

~ गोपालदास "नीरज"


  Aug 1, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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