सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
*तही=खाली
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
*क़नाअत=संतोष; आलम-ए-रंग-ओ-बू=रंगों और ख़ुशबुओं की दुनिया
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
*मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ=रोने-धोने की जगहें
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
*शाहीं=गरुड़; परवाज़=उड़ान भरना
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
*रोज़-ओ-शब=सुबह -शाम के चक्कर; ज़मीन-ओ-मकाँ=धरती और मकान
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
*अंजुमन=महफ़िल; राज़दाँ=रहस्य जानने वाले
~ मोहम्मद इक़बाल
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
*तही=खाली
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
*क़नाअत=संतोष; आलम-ए-रंग-ओ-बू=रंगों और ख़ुशबुओं की दुनिया
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
*मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ=रोने-धोने की जगहें
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
*शाहीं=गरुड़; परवाज़=उड़ान भरना
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
*रोज़-ओ-शब=सुबह -शाम के चक्कर; ज़मीन-ओ-मकाँ=धरती और मकान
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
*अंजुमन=महफ़िल; राज़दाँ=रहस्य जानने वाले
~ मोहम्मद इक़बाल
Submitted by: Ashok Singh
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