
नए मौसम की खुशबू आज़माना चाहती है
खुली बाहें सिमटने का बहाना चाहती हैं
नयी आहें, नए सेहरा, नए ख़्वाबों के इमकान
नयी आँखें, नए फ़ित्ने जगाना चाहती हैं
बदन की आग में जलने लगे हैं फूल से जिस्म
हवाएं मशअलों की लौ बढ़ाना चाहती हैं
~ इफ्तिख़ार आरिफ़
Oct 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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