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Thursday, April 2, 2015

नए मौसम की खुशबू


नए मौसम की खुशबू आज़माना चाहती है
खुली बाहें सिमटने का बहाना चाहती हैं

नयी आहें, नए सेहरा, नए ख़्वाबों के इमकान
नयी आँखें, नए फ़ित्ने जगाना चाहती हैं

बदन की आग में जलने लगे हैं फूल से जिस्म
हवाएं मशअलों की लौ बढ़ाना चाहती हैं

~ इफ्तिख़ार आरिफ़


  Oct 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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