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Thursday, April 2, 2015

उम्र की दास्तान लम्बी है




उम्र की दास्तान लम्बी है
चैन कम है थकान लम्बी है

हौसले देखिए परिंदों के
पर कटे हैं उड़ान लम्बी हैं

पैर फिसले ख़ताएँ याद आईं
कैसे ठहरें ढलान लम्बी है

ज़िंदगी की ज़रूरतें समझो
वक़्त कम है दुकान लम्बी है

झूठ-सच जीत-हार की बातें
छोड़िए दास्तान लम्बी है

~ बी. आर. विप्लवी


  Oct 23, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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