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Tuesday, April 7, 2015

खर्ची में पूरा एक दिन रोज़ मिलता है



मुझे खर्ची में पूरा एक दिन रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है,
झपट लेता है अंटी से

कभी खीसे से गिर पड़ता है
तो गिरने की आहट भी नहीं होती
खरे दिन को भी मैं
खोटा समझ के भूल जाता हूँ

गरेबां से पकड़ कर
माँगने वाले भी मिलते हैं
'तेरी गुज़री हुई पुश्तों का कर्ज़ा है,
तुझे किस्तें चुकानी है...'

ज़बरदस्ती कोई गिरवी भी रख लेता है,
ये कह कर
'अभी दो चार लम्हे
खर्च करने के लिए रख ले,

बकाया उम्र के खाते में लिख लेते हैं,
जब होगा हिसाब होगा '
बड़ी हसरत है पूरा एक दिन
इक बार अपने लिए रख लूँ

तुम्हारे साथ पूरा एक दिन
बस खर्च करने की तमन्ना है

 - गुलज़ार

  Feb 25, 2011| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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