अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो
~ वसी शाह
Jun 17, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो
न तुम्हें होश रहे और न मुझे होश रहे
इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो
तुम हथेली को मिरे प्यार की मेहंदी से रंगो
अपनी आँखों में मिरे नाम का काजल कर दो
इस के साए में मिरे ख़्वाब दहक उट्ठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो
धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो
जैसे सहराओं में हर शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो और मुझे जल-थल कर दो
तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल की
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मसअला हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझ से
अपनी चाहत से तवज्जोह से मुझे हल कर दो
अपने ग़म से कहो हर वक़्त मिरे साथ रहे
एक एहसान करो इस को मुसलसल कर दो
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँ
और मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो
न तुम्हें होश रहे और न मुझे होश रहे
इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो
तुम हथेली को मिरे प्यार की मेहंदी से रंगो
अपनी आँखों में मिरे नाम का काजल कर दो
इस के साए में मिरे ख़्वाब दहक उट्ठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो
धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो
जैसे सहराओं में हर शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो और मुझे जल-थल कर दो
तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल की
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मसअला हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझ से
अपनी चाहत से तवज्जोह से मुझे हल कर दो
अपने ग़म से कहो हर वक़्त मिरे साथ रहे
एक एहसान करो इस को मुसलसल कर दो
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँ
और मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो
~ वसी शाह
Jun 17, 2012| e-kavya.blogspot.com
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